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श्रीवीरविजयजीकृत चोसठप्रकारी पूजा. १४३ तिहां जावे ॥ अजरामर निकलंक वरूपे, निःकर्मा थावे ॥ श्रा० ॥ ४॥ ते सिद्ध केरी पमिमा पूजे, सिझमयी होवे ॥ नाश्धोश निरमल चित्ते, आरीसो जोवे ॥ आ ॥५॥कर्मसूदन तप केरी पूजा, फल ते नर पावे ॥ श्रीशुनवीर स्वरूप विलोकी, शिववह घर यावे॥ आ० ॥६॥ ॥ ए॥ काव्यं ॥ शिवतरो० ॥ १॥ शमरसै ॥२॥
॥ अथ मंत्रः॥ ॥ ॐ ही श्री परम ॥ नामकर्मसत्ताविछेदनाय फलानि य॥स्वा॥कलश॥गायो गायो॥इति नामकर्मसत्ताविछेदनार्थमष्टम फलपूजा समाप्ता॥॥४॥
॥ इति षष्ठदिवसेऽध्यापनीयनामकर्मनिवारणार्थ षष्ठपूजाष्टकं संपूर्णम् ॥ ६॥ सर्व गाथा (६४)
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