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________________ ९४२ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. नैवेद्यं य० ॥ स्वा० ॥ इति नामकर्म उदय विश्वेदनार्थं सप्तम नैवेद्यपूजा समाप्ता ॥ ७ ॥ ४७ ॥ ॥ अथाष्टम फलपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ श्राहारकसग जिए नरडुगं, वैक्रियनी श्रगीयार ॥ ए ध्रुव सत्ता कही, बीजी ध्रुव संसार ॥ १ ॥ ॥ ढाल आठमी ॥ राग प्रजाती ॥ प्रजाते उठीने माता मुखकुं जोवे ॥ ए देशी ॥ ॥ यवी रूमी जगति में, पहेलां न जाणी ॥ पहेलां न जाणी रे स्वामी, पहेलां न जाणी ॥ संसारनी मायामां में, क्लोव्युं पाणी ॥ ० ॥ ए - कणी ॥ कल्पतरुनां फल लावीने, जे जिनवर पूजे ॥ काल अनादि कर्म ते संचित, सत्ताथी भ्रूजे ॥ ० ॥१॥ यावर तिरि नरयायव ए डुग, इग विगला लीजे ॥ साधारण नवमे गुणगणे, धुर जागे बीजे ॥ श्र० ॥ २ ॥ केवल पामी शिवगति गामी, शैलेशी टाणे ॥ चरम समय दो मांहे स्वामी, अंतिम गुणठाणे ० ॥ ३ ॥ बाकी नामकरमनी पयमि, सघली ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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