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श्रीवीरविजयजीकृत चोसरप्रकारी पूजा. १४१ जाग असंखेश्राहारता रे, निर्जरे नाग अनंत॥जगत्गुरु श्रापजो रे, श्रापजो पद अणाहार ॥जग ॥१॥ ए श्रांकणी ॥ एह रीत पूरे हुवे रे, नमउदयाजब जाय॥सुहुम तिगायव धुर गुणे रे, उदय कहे जिनराय ॥ जग ॥२॥ बीजे विगल ग थावरु रे, चोथे अणश्क दोय ॥ पूर्वी उगवैक्रीडुगे रे, देव निरयगति जोय ॥ जग ॥३॥ तिरिगर उद्योत पांचमे रे, बठे थाहारक दोय ॥ चरम संहनन तिग सातमे रे, षनग उपशम होय ॥ जग ॥४॥ उरला थिर खग उगा रे,पत्तेय तिग उ संगण ॥तेय कम्म धुर संघयणने रे, अगुरुलघु चल जाण ॥ ॥ जग ॥५॥ सुसर सुसर चवन्ना रे, निर्माण उदय सयोग। ॥ सुजगाश्क जस तस तिगो रे, नरगश् पणिंदि अयोगी ॥ जग ॥ ६॥ जो जिननाम उदय हुवे रे, तो तीर्थंकर लीध ॥योग निरोध करी हुश्रा रे, श्रीशुनवीर ते सिक ॥ जग ॥७॥ ॥ काव्यं ॥ अनशनं ॥१॥ कुमतबोध ॥२॥
॥अथ मंत्रः॥ ॥ ॐ ही श्री परम ॥ नामकर्मउदयविछेदनाय
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