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________________ १४० विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. धुर संघयण, चोथे बंध कहावे॥अजस अथिर मुग बड़े बंधे, दशमे जस बंधावे रे ॥ प्राणी ॥४॥ अगुरुलघु चन जिन निरमाण, सुरफुग सुहगश्कहीए॥ तस नव उरल विणु तणुवंगा, वर्णादिक चल लहीए रे ॥ प्राणी ॥५॥ समचरस पणिंदि जाति, बांधे अम गुणगणे॥बंधहेतु शुनवीर खपावे, उज्ज्वल ध्यानने टाणे रे ॥प्राणी ॥६॥ ॥ काव्यं ॥ वितितले० ॥१॥ सहजनाव० ॥२॥ ॥ अथ मंत्रः॥ ॥ ही श्री परम ॥ नामकर्मबंध निवारणाय अदतान्य० ॥स्वा० ॥ इति नामकर्मबंधनिवारणार्थ षष्ठादतपूजा समाता ॥ ६ ॥ ४६ ॥ ॥ अथ सप्तम नैवेद्यपूजा प्रारंनः॥ ॥ दोहा ॥ ॥ चवन्ना तेथ कम्मण, निमित्त अथिर थिर दोय ॥ अगुरुलघु उदयिनी, शेष अध्रुव ते जोय ॥१॥ ॥ ढाल सातमी॥ देखो गति दैवनी रे ॥ ए देशी॥ ॥ नैवेद्यपूजा नावीए रे, पुजल आहार ग्रहंत ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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