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________________ श्रीवीरविजयजीकृत चोसवप्रकारी पूजा. १३७ ॥ काव्यं ॥ जवति दीप० ॥ १ ॥ शुचिमनात्म० ॥ २ ॥ ॥ अथ मंत्रः ॥ ॥ ॐ ॐ श्री परम० ॥ स्थितिबंध निवारणाय दीपं य० ॥ खा० ॥ इति स्थितिबंध निवारणार्थं पंचम दीपकपूजा समाप्ता ॥ ५ ॥ ४५ ॥ ॥ अथ षष्टातपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ वन्न च तेथा कम्मण, अगुरुलघु निर्माण ॥ उपघात नव ध्रुवबंधि बे, अमवन्न अध्रुवा जाण ॥ १ ॥ ॥ ढाल बही ॥ त्री जे जब वर थानक तप करी ॥ ए देश ॥ ॥ श्रतपूजा जिननी करतां, नामकरम कय जावे ॥ नामनी सरव अघाति पयडियां, वरते निज निज जावेरे ॥ प्राणी रूपी गुण निपजावो, पूज्यनी पूजा रचावो रे || प्राणी० ॥ १ ॥ ए आंकणी ॥ थावर च ताप बेवहुं, हुंड निरयडुग जाएं | इग डु ति च जाति जोन बांधे, पामी प्रथम गुणठाएं रे ॥ प्राणी० ॥ २ ॥ मनागि संघयण तिरिडुग, दोहग तिग उद्योत ॥ अशुभ विहायोगति साखादन, बंध कहे जगवंत रे ॥ प्राणी० ॥३ ॥ मणुश्र उरलडुग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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