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श्रीवीरविजयजीकृत चोसप्रकारी पूजा. १५१ सौधर्मे सागर दोय जी ॥ जि० ॥ बीजे अधिकेरां होय जी ॥ जि० ॥४॥ दोय कल्पे सगहिय जाणो जी ॥ जि० ॥ ए परमायु परिमाणो जी ॥ जि० ॥ दश चन्दश सत्तर दीजे ज।॥ ज०॥ महाशुक्र लगे ते लीजे जी ॥ जि॥हवे कीजे अधिक एक एकेजी ॥जि०॥ एकत्रीश नवमे ग्रैवेके जी॥ जि०॥ तेत्रीश ते पंच विमाने जी ॥ जि० ॥ समकितदृष्टि तिहां माने जी ॥ जि० ॥६॥ शिवसाधन बाधक टाणे जी। जि० ॥ सुरसुख ते कुःख कर। जाणे जी ॥ जि ॥ कल्याणक रंगे जीना जी॥ जि ॥ शुनवीर वचनरस लीना जी ॥ जि० ॥७॥ ॥ काव्यं ॥ जिनपते ॥ १॥ सहजकर्म ॥२॥
॥ अथ मंत्रः॥ ॥ दी श्री परम॥सुरायुर्निगमनंजनाय चंदनं य० ॥ स्वा० ॥ इति सुरायुर्निगमनंजनार्थं द्वितीय चंदनपूजा समाप्ता ॥२॥३४॥ ॥ अथ तृतीय पुष्पपूजा प्रारंजः ॥
॥दोहा॥ ।। त्रीजी कुसुमनी पूजना, पूजे नित्य जिनराय ॥
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