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________________ १२० विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. जलं य० ॥ स्वा० ॥ इति देवायुर्बंधस्थान निवारणार्थं प्रथम जलपूजा समाप्ता ॥ १ ॥ ३३ ॥ ॥ अथ द्वितीय चंदनपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ पर्याप्त पूरी करी, समकितदृष्टि देव ॥ न्हवण विलेपन केसरे, पूजे जिन तत्खेव ॥ १ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ कोशा वेश्या कहे रागी जी ॥ मनोहर मन गमता ॥ ए देशी ॥ ॥ दुनियामां देव न डूजाजी, जिनवर जयकारी ॥ करूं अंग विलेपन पूजा जी ॥ जि० ॥ तेम सम किती सुर पूजे जी ॥ जि० ॥ मिथ्यात्वी पण के बूजे जी ॥ जि० ॥ १ ॥ तिहां पहेली जवण निकाय जी ॥ जि० ॥ एक सागर अधिकुं याय जी ॥ जि० ॥ उत्तरथी दक्षिण हीणा जी ॥ जि० ॥ नवमां दो पलिय ते ऊणा जी ॥ जि० ॥ २ ॥ व्यंतर एक पलियनुं श्राय जी ॥ जि० ॥ सु साहिब त्रीजी निकाय जी ॥ जि॥ सहस लक्ष वरस अधिकेरे जी ॥ जि०॥ रवि चंद्र पल्योपम पूरे जी ॥ जि० ॥ ३ ॥ गढ़ रिख तारक जोमाय जी ॥ जि० ॥ पय अर्धने चोथे पाय जी ॥ जि० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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