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श्रीवीरविजयजीकृत चोसवप्रकारी पूजा. ११५ ॥ ढाल पहेली ॥ शीतल जिन सहजानंदी ॥ ए देशी ॥
॥ तीर्थोदक कलशा जरीए, अनिषेक प्रजुने करीए ॥ प्रा तिहारज शोजा धरीए, लघु गुरु श्राशातना हरीए ॥ सलूषा संत ए रीत कीजे, देववायु लहे जव बीजे ॥ स० ॥ १ ॥ परमातमपूजा रचावे, समता रस ध्यान धरावे ॥ शोक संताप अप करावे, साधु साधवीने वोहरावे ॥ स० ॥ २ ॥ गुणी राग धरे व्रत पाले, समकित गुणने अजुवाले ॥ जया अनुकंपा ढाले, करे गुरुवंदन त्रण काले ॥ स० ॥ ३ ॥ पंचाग्निताप सहता, ब्रह्मचारी वनमां वसंता ॥ कष्टे करी देह दमंता, बाल तपसी नाम धरंता ॥ स० ॥ ४ ॥ बंध करतो सातमे जाणो, उदये चोथो गुणगणो ॥ उधे सुरश्रायु प्रमाणो, सत्ता उपशम गुणगणो ॥ स० ॥ ५ ॥ लोक लोकोत्तर गुणधारी, अंते परिणाम समारी ॥ देवलोक मांहे अवतारी, शुजवीर वचन बलिहारी ॥ स० ॥ ६ ॥
॥ काव्यं ॥ तीर्थोद कै० ॥ १॥ सुरन दी ० ॥२॥ जनमनो० ॥३॥ ॥ अथ मंत्रः ॥
॥ ॐ ॐ श्री परम० ॥ देवायुबंध स्थान निवारणाय
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