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________________ १२२ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. पंतिसंग करे सदा, शास्त्र जणे धरे न्याय ॥ १ ॥ न्याये उपार्जन करे, जयणायुत मुनिदान ॥ जड़क जावे नविकरे, खारंज निंदा ठगए ॥ २ ॥ परउपकारादि गुणे, बांधे मनुं श्राय ॥ तुज शासन रसीया थइ, शिवमारग के जाय ॥ ३ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ आसरा योगी ॥ ए देशी ॥ ॥ कुसुमनी पूजा कर्म नसावे, नागकेतु परे जावे रे ॥ सुजो जगखामी ॥ श्रायु निकाचित बे पण तहवी, कर्मनुं जोर दवावे रे ॥ सु० ॥ १ ॥ श्रेणिक सरिखा तुज गुणरागी, कर्मनी बेडी न जांगी रे ॥ सु० ॥ सुकमालिका उपनय इहां जावो, सार्थवाह घर लागी रे || सु० ॥ २ ॥ त्र्याशी लाख पूरव घर वासे, जिनवर विरति न आवे रे ॥ सु० ॥ बंध तुरिय सत्ता उदयेथी, केवली ते खपावे रे || सु० ॥ ३ ॥ त्रण पढ्योपम युगलिक श्रायु, कल्पतरु फल लीना रे ॥ सु० ॥ संखायु नर शिव अधिकारी, जाय ते जव व्रतहीना रे ॥ सु० ॥ ४ ॥ पूरवकोकि चरण फल हारे, मुनि अधिकेरे याय रे ॥ सु० ॥ श्रीशुजवीर अचल सुख पावे, चरम चोमासुं जाय रे ॥ सु० ॥ ५ ॥ ॥ काव्यं ॥ सुमनसां० ॥ १ ॥ समयसार० ॥ २ ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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