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________________ ११६ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. ॥ अथाष्टम फलपूजा प्रारंजः॥ ॥ दोहा ॥ ॥ मोह महाजट केशरी, नामे ते मिथ्यात ॥ फलपूजा प्रजुनी करी, करशुं तेहनो घात ॥१॥ ॥ ढाल आठमी ॥ राग वसंत, धुमार ॥ अहो मेरे ललना ॥ ए देशी ॥ ॥मोहमहीपति महेलमें वेठे, देखे श्रायो वसंत॥ ललना ॥ वीर जिणंद रहे वनवासे, मोहसे न्यारो नगवंत ॥ चतुराके चित्त चंद्रमा हो ॥१॥ मंजरी पिंजरी कोयल टहुके, फूली फली वनराय॥ ललना ॥ धर्मराज जिनराजजी खेले, होरी गोरी अजवीकाय ॥ च०॥२॥ संतोष मंत्री वमो मुख आगे, समकित मंमली नूप ॥ ललना ॥ सामंत पंच महाव्रत गजे, गाजे मार्दव गजरूप ॥ च० ॥३॥ चरण करण गुण प्यादल चाले, सेनानी श्रुतबोध ॥ ललना ॥ शीलांगरथ शिर सांई सुहावे, अध्यवसाय जस योध ॥ च० ॥ ४ ॥ मोहराय पण णे समे श्रायो, माया प्रिया सुत काम ॥ ललना ॥ मंत्री लोज जट पुर्डर क्रोधा, हास्यादि षट्रथ नाम ॥ १० ॥५॥मिथ्यात Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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