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________________ श्रीवीरविजयजीकृत चोसवप्रकारी पूजा. ११७ मंमली राय अटारो, बंध उदय निज वगण ॥ ललना॥ समकित मिश्रमोहनी लघु नाश, उदये सत्तम सम्म जाण ॥ च ॥ ६॥ सित्तेर सागर कोमाकोमी, मिथ्यात्वनो स्थितिबंध ॥ ललना॥सत्ता त्रणनी श्रम गुणगणे, मानहस्तीए चाहे धंध ॥ च ॥ ७ ॥ तस रदक मन जिन पलटायो, मोह ते नागो जाय ॥ ललना॥ध्यान केशरीया केवल वरीया, वसंत अनंत गुण गाय ॥ च ॥ ७॥ ते शुजवीर जिणंदे दाख्यो, कर्मसूदन तप एद् ॥ ललना ॥ तपफल फलपूजा करी याचो, साचो सांगुं करो नेह ॥ च ॥ ए॥ ॥ काव्यं ॥ शिवतरोः ॥ १॥ शमरसैका ॥२॥ ॥अथ मंत्रः ॥ ॥ ही श्री परम ॥ दर्शनमोहनीयनिवारणाय फलानि यावाणाकलशोगायोगायो॥इति दर्शनमोहनीय निवारणार्थमष्टम फलपूजा समाप्ता ॥॥३२॥ ॥ इति चतुर्थ दिवसेऽध्यापनीयमोहनीयकर्मसूदनाथ चतुर्थपूजाष्टकं संपू. र्णम् ॥४॥ सर्व गाथा (७४) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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