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________________ श्रीवीरविजयजीकृत चोसठप्रकारी पूजा. ११५ कह्या, वेद विवश रह्या ॥ घर मी विदेशे जाय रे ॥ म॥४॥गले फांसो धरे, ऊंपापात करे॥मात पिताशुं न लजाय रे॥म॥ वेद त्रिहुं जदयाणे, नवमे गुणगणे ॥ मिथ्याते नपुं बंधाय रे ॥ म ॥५॥ नवम पूजा सुधी, पुरुष प्रिया बंधी ॥ हवे सत्ताथी बेदाय रे॥म॥ नर नपुंसक नारी,नवमेथी हारी॥ षट् त्रण चोथाने नाय रे ॥ म ॥६॥ नरीही नपुं जोमी, सागर कोमाकोमी ॥ दश पन्नर वीश कहाय रे ॥मवेदे नड्यो जड्यो, संसारी घड्यो॥ निर्वेदी चड्यो नहीं गय रे ॥म ॥ ७॥ अब तुं खामी मढ्यो, नरजवज फल्यो ॥ नैवेद्यपूजा फलदाय रे ॥ म ॥ श्रीशुजवीर हजूरे, रहो श्रानंद पूरे ॥ नववेदन विसरी जाय रे ॥ म० ॥ ७॥ ॥ काव्यं ॥ अनशनं०॥१॥ कुमतबोध ॥२॥ ॥ अथ मंत्रः॥ ॥ ही श्री परम ॥ वेद त्रिकसूदनाय नैवेद्यं य० ॥ खा० ॥ इति वेद त्रिकसूदनाथ सप्तम नैवेद्यपूजा समाप्ता ॥७॥३१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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