________________
श्रीवीरविजयजीकृत चोसवप्रकारी पूजा. १० कर्दम रंग रे ॥ स० ॥ अनीतिपुरे व्यवहारीयो रे, रणघंटाने संग रे ॥ स० ॥ चार ॥५॥ चार धूतारा वाणीया रे, पासेथीवाट्युं वित्त रे ॥ सम्॥ रत्नचूम परे शुन विरतिशु, लागे चतुरनुं चित्त रे ॥ स० ॥ चार ॥६॥ ॥ काव्यं ॥ सुमनसांग ॥१॥ समयसार ॥२॥
॥ श्रथ मंत्रः ॥ ॥ श्री श्री परम ॥ अप्रत्याख्यानिनिवारणाय पुष्पाणि य० ॥ खा० ॥ इति अप्रत्याख्यानिनिवारणार्थं तृतीय पुष्पपूजा समाप्ता ॥३॥२७॥ ॥ अथ चतुर्थ धूपपूजा प्रारंनः॥
॥दोहा॥ ॥ प्रत्याख्यानी चोकमी, दहन करेवा धूप ॥ पूजक ऊर्ध्व गति लहे, वलीन पडे लवकूप ॥१॥ ॥ ढाल ॥ अने हारे वादहोजी वाये जे वांसली
रे॥ ए देशी ॥ ॥ श्रने हारे धूप धरो जिन श्रागले रे, कृष्णागरु धूप दशांग, श्रेणि नली गुणगणनी रे ॥ श्रने हारे
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org