SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. चंदनं य० ॥ वा ॥ इति अनंतानुबंधिदहनार्थ द्वितीय चंदनपूजा समाप्ता ॥२॥ २६ ॥ ॥ अथ तृतीय पुष्पपूजा प्रारंनः ॥ ॥श्रपच्चरकाणी चोकडी, टाली अनादिनी नूल ॥ परमातम पद पूजीए, केतकी जायने फूल ॥१॥ ॥ ढाल त्रीजी॥राणी रुए रंग महेलमें रे॥ए देशी॥ फूलपूजा जिनराजनी रे, विरतिने घरबार रे॥ सनेहा ॥ ते गुणलोपक अपच्चरकाणी, जे क्रोधादिक चार रे॥ सनेहा ॥ चार चतुर चित्त चोरटा रे, मोह महीपति घेर रे॥साचार॥१॥चालीश सागर कोमाकोडी, बंध थिति अनुसार रे॥स ॥ उदय विपाक अबाधक काले, वर्ष ते चार हजार रे॥ स ॥ चारण ॥२॥ बंध उदय चोथे गुणे रे, नवमे सत्ता टाल रे ॥स॥वर्ष लगे ते पाप करी रे, न खमावे गुरु बाल रे ॥ स ॥ चार ॥३॥ तिर्यंचनी गति एहथी रे, पुढवी रेखा क्रोध रे॥ स०॥ अस्थि नमाव्यु वरषे नमे रे, बाहुबली नरयोध रे ॥ स० ॥ चार ॥ ४ ॥ माया मिंढासिंग सरीसी, लोन ले Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy