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________________ (२१) उनको मन वचन कायायें करके सेव्या सेवाया अ नुमोद्या सो मुजे धिक्कार धिक्कार वारंवार मिहामि उक्कडं ॥ एक एक बोलसें लगा कर जाव अपंता अ पंता बोलमें आदरवा योग्य बोल आदस्या नहीं, आ राध्या पाल्या फरस्या नहीं, विराधना खंमनादिक के री करा अनुमोदि मन वचन कायायेंकरी ते मुजे धिक्कार धिक्कार वारंवार मिजामि उक्कडं ॥ श्रीजिन नगवंतजी महाराज आपकी आझामें जो जो प्रमा द कस्या, सम्यक् प्रकारे उद्यम नहीं कस्या, नहीं करा या, नहीं अनुमोद्या, मन वचन काया करकें अथवा अनाज्ञा विषे उद्यम कस्या कराया अनुमोद्या एक करके अनंतमे नाग मात्र दूसरा कोई स्वप्नमात्रमें नी श्रीनगवंत महाराज आपकी आझाद्यं अधिका बा विपरीत पणे प्रवत्यो हुँ ते मुजे धिक्कार धिक्कार वारंवार मिजामि उक्कडं ॥ ॥दोहा॥ ॥ अक्षा अक्ष परूपणा । करी फरसना सोय ॥ अनजाने पदपातमें। मिजा उक्कड मोय ॥ १॥ सूत्र अर्थ जानुं नहीं । अल्पबुद्धि अनजान ॥ जिननाषि त सब शास्त्रका । अर्थ पाठ परमान ॥२॥ देव गुरु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003852
Book TitleBruhadaloyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages28
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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