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(२२)
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धर्म सूत्रं । नवतत्त्वादिक जोय ॥ अधिका डंडा जे कह्या । मिठा डक्कड मोय ॥ ३ ॥ दूं मगसेलीयो हो रह्यो । नहीं ज्ञान रस नीज ॥ गुरु सेवा न करीश कुं । किम मुज कारज सीऊ ॥ ४ ॥ जाने देखे जे सु ने । देवे सेवे मोय ॥ अपराधी उन सबनको । बदला देनुं सोय ॥ ५ ॥ गवन करूं बुगचारतन । दरव नाव सब कोय ॥ लोकनमें पगगट करूं । सूईपाई मोय ॥ ६ ॥ जैनधर्म शुद्ध पायकें । वस्तुं विषय कषाय ॥ एह यचना हो रह्या । जलमें लागी लाय ॥ ७ ॥ जि तनी वस्तु जगतमे । नीच नीचसें नीच ॥ सबसें में पापी बुरो । फसुं मोहके बीच ॥ ८ ॥ एक कनक य रु कामिनी। दो महोटी तरवार ॥ उठ्यो यो जिन नजनकूं । बिचमें लीयो मार ॥ ए ॥
॥ सवैयो कवित्त ॥
॥ में महापापी बांके संसार बार बारहीका वि हार करूं खागला कुछ धोय कीच फेर कीचबिच रहुं विषय सुख चारु मन्न प्रभुता वधारी है ॥ करत फ की ऐसी मिरीकी प्रास करूं । काहेकुं धिक्कार सि र पगड़ी उतारी है ॥ १० ॥
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