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________________ बितफल दातार ॥ ७ ॥ श्रीजिन युग पदकमलमें । मु ज मन अलिय वसाय ॥ कब कगेवो दिनकरु । श्री मुख दरिसन पाय ॥ ॥ प्रणमी पदपंकजननी। अ रिगंजन अरिहंत ॥ कथन करुं हवे जीवनु । किंचित मुज विरतंत ॥॥ अंजनाकी देशी ॥ ढुं अपराधि अ नादिको । जनम जनम गुना किया नरपूर के ॥ बूं टीयां प्राण बकायनां । सेवियां पाप अढारां करूरके ॥ श्रीमुख० ॥ १० ॥ १ ॥आज तांइननवमें पहे लां संख्याता असंख्याता अनंता नवमें, कुगुरु कुदेव अरु कुधर्मकी सदहणा परूपना फरसना सेवनादिक संबंधी पाप दोष लाग्या ते मिहामि उक्कडं ॥२॥ मैनें अ झानपणे मिथ्यात्वपणे अव्रतपणे कषायपणे अशुन योगें करी प्रमादें करी अपबंदा अविनीतपणां कस्खां ॥३॥ श्री श्रीअरिहंत जगवंत वीतराग केवल ज्ञानी महाराजजीकी श्री गणधरदेवजीकी आचारजमहारा जजीकी श्री धर्माचारजजी महाराजजीकी श्री नपा ध्यायजीकी,अने साधुजीकी आर्याजी महाराजकी श्रा वक श्राविकाजीकी समदृष्टि साधर्मि उत्तम पुरुषांकी शास्त्र सूत्रपातकी अर्थ परमार्थकी धर्मसंबंधि सकल पदार्थोकी अविनय अनक्ति आशातनादिक करी, क Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003852
Book TitleBruhadaloyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages28
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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