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समकित व्रत आराध ॥ निर्वैरी सब जीवको-। पावे मुक्ति समाध ॥ २७ ॥ इति ॥ नूल चुक मिजामि 5 कडं ॥ इति श्रावक लालाजी रणजित सिंहजीकृत दो हा संपूर्ण ॥ श्री पंचपरमेष्टिनगवनयोनमः ॥
॥दोहा॥ ॥ सि६ श्रीपरमातमा॥अरिगंजन अरिहंत । इष्ठ देव वंदू सदा। जयनंजन नगवंत ॥१॥ अनंत चोवीशी जिन नमुं । सिम अनंता कोड ॥ वर्तमान जिनवर सवे । केवली दो कोडीनवकोड ॥ २ ॥ गणधरादिक सर्व साधुजी। समकितव्रत गुणधार ॥यथायोग्य वंदन करूं। जिन आझा अनुसार ॥३॥ प्रथम एक नव कार गुणनो ॥
॥दोहा॥ ॥पंचपरमेष्टी देवनो। नजन पुर पहिचान ॥ कर्म अरि नाजे सनी। शिवसुख मंगल थान॥ ४ ॥ अरि हंत सिह समरूं सदा । आचारज उवजाय ॥ साधु सकलके चरनकुं। बंदू शीश नमाय ॥ ५ ॥ शासन नायक समरिये । वर्षमान जिनचंद ॥ अलिय विधन दूरे हरे । आपे परमानंद ॥६॥अंगुठे अमृत वसे । ल ब्धि तणा नंमार ॥ जे गुरु गौतम समरियें । मन वं
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