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(१२) राइ अनुमोदी मन वचन कायायें करी व्यथी क्षेत्र थी कालथी नावथी सम्यक् प्रकारे विनय नक्ति श्रा राधना पालना फरसना सेवनादिक यथायोग्य अनु क्रमें नही करी, नहि करावी, नहिं अनुमोदी ते मुजे धिक्कार धिक्कार, वारंवार मिहामि उक्कडं ॥ मैरी नूल चूक अवगुन अपराध सब माफ करो बदो मुजे में खमा, मन वचन कायायें करी॥
॥दोहा॥ ॥में अपराधी गुरु देवको । तीन नवनको चोर॥ ग्गुं विराणा मालमें । हाहा कर्म कठोर ॥ १॥ कामी कपटी लालची। अपलंदा अविनीत ॥ अविवेकी को धी कठिण । महापापी रणजीत ॥ २ ॥ (अांही वा चनारे आप आपका नाम कहेना.) जे में जीव वि राधिया । सेव्यां पाप अढार ॥ नाथ तुमारी साख सें । वारं वार धिक्कार ॥ ३ ॥ मैनें बकायपने बही कायकी विराधना करी। पृथिवीकाय अपकाय तेल काय वायुकाय वनस्पतिकाय यि तेंख्यि चौरिंघिय पंचेंघिय सन्नी असन्नी गर्नज । चौदे प्रकारे समूर्डि म प्रमुख त्रस थावर जीवांकी विराधना करी करावी अनुमोदी मन वचन कायायें करी उठतां बेसतां सु
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