________________ (ए) रा गाशुं // रहो गुण // ए आंकणी // तुमें रागथी नही रंगाया रे, नहीं देष रिपुश्री बंधाया, महा मोहथी नांही लीपाया // रहो // 1 // धन माल श्रने राजधानी रे, महा संकट आकर जानी रे॥ तुमें बोडी उनीयां दीवानी // रहो // 2 // पांच ईजिय सुजटथी शूरा रे, बालस विकथाथी दूरा रे, चार चोर कस्या चकचूरा ॥रहो // 3 // ज्ञान दोरीथी मनकपि बांध्यो रे, तीर तत्त्व रमणतामां साध्यो रे, जहां समकित अजुत लाध्यो // रहो // 4 // गुरु विद्या वेलडीयें विटाया रे, जेनी कल्पतरु सम काया रे, ए तो समता जलथी शिंचाया // रहो // 5 // तुमें शास्त्र सुधारस लीधो रे, महा मोहरिपु वश कीधो रे, तुमें अनुभव प्यालो पीधो // रहो० // 6 // तुमें ज्ञान रतन नंमार रे, करवा हम पर उपकार रे, थजो नोधाराना आधार // रहो // 7 // तुम आणा सदा शिर धरशुं रे, तप नियम विशेषे करशुं रे, कहे शांतिविजय अनुसरशुं // रहो॥७॥ इति // Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org