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(ए१) सें, सोल शिष्य परिवार रे॥कहा॥२॥ चरण क. रण गुणधर अनूपम, श्रीगुरु श्रातमराम रे ॥ जिन शासन शणगार महामुनि, तत्त्वरमणना धाम रे ॥ कहां॥३॥ नय गम नंग प्रमाण करीने, जीवादिकनुं स्वरूप रे ॥ध्रुव उत्पाद नाशथी गुरुने, जाण्यु निखिल अनूप रे ॥कहा॥४॥ जाण्या अव्यह गुण पर्याय, धर्माधर्म श्राकाश रे ॥ पुद्गल काल अने वलि चेतन, नित्यानित्य प्रकाश रे ॥ कहां ॥५॥ परम कस्यो उपगार तुमें गुरु, उर्मत दूर नसाया रे॥ जय जयकार थयो जिनशासन,श्रानंद अधिक सवाया रे॥कहा॥६॥जो न होत था वखत तुमारा, वचन दीवडा रूडा रे॥ तो दूषम अंधारी रातें, खेत अमें मत कूडां रे ॥कहां॥७॥ विद्यानी वधती करवामां, जेना विविध विचार रे ॥ ए गुरुना उपकार कहो किम, जूले श्रा संसार रे॥ कहां ॥ ७॥ देश बहु विचरो गुरुराया,क्रोड करो शुज काम रे॥अंतर घटमां शांतिविजय पण, राखे जे दृढ हाम रे ॥ए॥
॥अथ गहूंली॥ ॥ जवि तुमें अष्टमी तिथि सेवोरे॥ए देशी॥ रहो गुरु राजनगर चोमासु रे, गुणनिधि गुण तुमा
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