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________________ ( ८६ ॥ ३ ॥ नाद्रोपद पडवा संवत श्रहारासें, धर नवके ऊपर, पांच चले घरसें ॥ काशी पटणा ममदर्श विविध दिलसें, हम दरस कीये आनंदघन वरसें ॥ धनलाल वंदना करूं शुद्ध मनसें, धन घडी जब देखुं नेनोंसें ॥ मेरी लागी लगन समेत शिखरजीसें, धन घडी दिवस जब देखूं नॅनोंसें० ॥ मेरी० ॥ ४ ॥ ॥ अथ गुरुगुण गहूंली ॥ ॥ जगत गुरु जिनवर जयकारी ॥ ए देश ॥ श्रोता रे सुणो गुरु गुणना रागी, जाणो रे थारी जाग्य द शा जागी ॥ श्रोता रे सुणो गुरु गुणना रागी ॥ ए यांकणी ॥ जंबूमां रे जरत जलो सुणी यें, देश गुर्जर राजनगर गणयें ॥ शोजा रे तेह शहेर ती सुपीयें ॥श्रोता रे० ॥ १ ॥ शोने रे जिनमंदिर जयकारी, के शत उपर व निरधारी ॥ नमे रे जिहां नित नित नर नारी ॥ श्रोता रे० ॥ २ ॥ करमदल कापवा बलवंता, साधु रे जिनशासनमां रमता ॥ एतो रे पांचे इंडियने दमता ॥ श्रोता रे० ॥ ३ ॥ श्राव्या रे गुरु देश विदेश फरी, भूमि राजनगरनी पवित्र करी ॥श्रोता रे मन संशय दूर हरी ॥ श्रोता रे० ॥ ४ ॥ संवत उगणीश चालीश विषे, गुरु गिरुवा जंगणीश शि For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003851
Book TitlePuja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1818
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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