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________________ (५) पर्वत सुखदाइ॥ एकजिपंच इंजितलक तांइ, धर गुणचास वर शिवरमणी पाश् ॥ मेरी लागी लगन समेतशिखरजीसें, धन घडी दिवस जब देखु नेनों सें ॥ ए श्रांकणी ॥१॥ ॥ दोहा । शिखर नूमि खारथ सती, लिखी ग्रंथमें सोय ॥ जहां असंख्यात शिवपद लीया, कोर्नु वरनन होय ॥१॥ ए विश टुक पर्वत पर सुखदाइ,धर ध्यान धरे जिहां वरे मोदनारी॥धन जोम शुरू श्रारजकी बलिहारी, शुज कर्म उदयसें पावत नर नारी ॥ तिर्यंच नरकगति बूटे दरशनसें, धन घडी दिवस जब देखु नेनोसें ॥ मेरी ॥२॥ ॥दोहा॥ मन वच तन कर नावसे, करुं वंदना तोय ॥सुरपत नरपत नागपत, शिव रमणीवर होय ॥२॥ ए डंमा सर्पिणी काल दोष जानो, चन तीरथ है चोघडी लीये थानो ॥ कैलास आदि गिरनार नेम जानो, श्रीवासुपूज्य चंपापुर हिये थानो॥ श्री वीरधीर गये पावा पुरी स्थलसें, धन घडी दिवस सब देखु नेनोंसें ॥ मेरी ॥३॥ ॥दोहा॥ पंच सेहेर पुरके निकट,गर्वनवादा गाम ॥ तामध्ये शिव पद लिया, श्रीगौतम जगवान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003851
Book TitlePuja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1818
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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