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( ४) व मोहे नीके जान पडी ॥ पुनीया ॥ए आंकणी॥ जोवनवंती नार हुवे जब, पीयाको रंगरली॥ जोवन गयां को वात न पूजे, फीरेती गलीय गली के॥ अब० ॥१॥ जब लगे बेल वहे धनीयका, तबलग चाह धणी ॥ बूढे बेलकी सार न जाणे, रुलता गलीय गली के ॥ अब० ॥॥ हरे पेड पर पंखी बेग, जपता नाम हरि ॥पान ऊडे पंखी उठ चाव्या, एही रीत खरी के ॥ अ॥३॥ सतवंती सतसे उठ चाली, मोहके जाल फसी॥ जूधर कहे जिने मर्म न जान्या, मुरदे संग जली के ॥ अब० ॥४॥
॥अथ नेमजिनस्तवनम् ॥ . ॥राग तुमरी ॥ मोरवा बपैया बोले, पियु पियु वनमें ॥ नेम श्याम गये सहसा वनमें ॥ मोरवा॥ ए श्रांकणी ॥ निशि अंधियारी कारी विजरी मरावे, मुजी विरह व्याकुल न तनमें ।मोरवा॥१॥ रीमजीम रीमजीम वादल वरसे, नदीयां शोर करत हे रनमें ॥ मोरवा ॥२॥ आनंद इसमे देखन चाहत, राजुल जर हे विरागण बिनमें । मो० ॥३॥
॥ अथ समेतशिखरजीनी लावणी॥ ॥ बारा कोश विस्तार चक्रधारी,बन रहे मनोहर
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