SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (७) ज्ये, रहि रे राजनगरमां कर्म पीसे ॥ श्रोता रे॥५॥ तृष्णा तरुणीथी मन ताणी, विरति रमण। करी पटराणी ॥ जेह उन्नय लोकमां सुख खाणी ॥ श्रोता रे ॥६॥ विवेक ने मंत्री पदताजा,संवेग कुंवर कीया युवराजा ॥ संवर रहे हाजरदरवाजा ॥ श्रोता रेण ॥७॥ आर्जव पटहस्ति महानारी, विनयरूप घोडा शणगारी ॥ मुनि श्रातमराज करे जारी॥श्रो ता रे ॥७॥रथ संजम शियल तणा जरीया, सुजट शमदमयी श्रलंकरीयामुनि॥रेसमता रसना दरिया ॥ श्रोता रे ॥ ए ॥ के समकित महेल मनो हारी, संतोष सिंहासन गुणकारी॥बेग रे जहा मुनि मुजाधारी श्रोता रे॥ १० ॥ चामर जिहां धर्म शुकल करता, कीरति जश बत्र जीहां फरतां॥ कस्या रे जेणें मोह रिपु मरता ॥ श्रोता रे ॥१९॥ अलिक अव्य राज कमुश्रलयं, नर्बु रे नाव राजमा मन वलग्युं ॥ कुरित वन शीघ्र जेथी सलग्युं ॥श्रोता रे ॥१२॥ श्रातमरूप लक्ष्मी रूडी लेवा, सदा करे शांतिविजय सेवा ॥ मले रे जेथी मुक्ति तणा मेवा॥ ॥अथ गुरुगुण गढूंदी॥ ॥ जवि तुमें सुणजो रे, जगवती सूत्रनी वाणी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003851
Book TitlePuja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1818
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy