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(५७) नराज ॥ जिम लहियें शिवपुरको राज, सब पातक खीनो रे ॥ चं० ॥४॥ आतम अनुभव रसमें रंग, कारण कारज समऊ तुंचंग ॥ दूर करो तुम कुगुरु संग, नरजव फल लीनो रे॥०॥५॥ए पूजा पढकें प्रजुकुं फूलघर चढावे ॥ इति एकादश पुष्पग्रह पूजा ॥११॥
॥अथ छादश पुष्पवर्षणपूजा प्रारंजः ॥ पांच वरणका सुगंध फूल, हाथमें ले के इसमुजब पढे.
॥ दोहा ॥ बादल करी वरषा करे, पंचवरण सुर फूल ॥हरे ताप सब जगतको, जानूदघन श्रमूल ॥१॥
॥ढाल ॥अडिल बंद ॥ फुल पगर अति चंग रंग बादर करी, परिमल श्रति महकंत मिले नर मधुकरी॥ जानुदघन अति सरस विकच अधो बीट हे,वरसे बाधारहित रचे जेम बीट हे ॥
॥राग वसंत ॥ साचा साहिब मेरा चिंतामणि खामी ॥ ए देशी ॥ मंगल जिन नामें, आनंद नविकुं घनेरा ॥ ए आंकणी ॥ फूल पगर बदरीकरो रे, हेठ बीट जिनकेरा ॥ मं० ॥१॥ पीडा रहित ढिग मधु कर गुंजे, गावत जिनगुण तेरा ॥ मं० ॥२॥ ताप हरे तिहुँ लोकका रे, जिन चरणे जस मेरा ॥ मं०॥ ॥३॥ अशुज करम दल दूर गये रे, श्रीजिन नाम
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