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________________ (५७) रटेरा ॥ मं॥ ४ ॥ श्रातम निर्मल नाव करीने, पू. जे मिटत अंधेरा ॥ मं० ॥५॥ ए पढकें फूल उगले ॥ ___॥ अथ त्रयोदशाष्टमंगलपूजा प्रारंजः॥ ॥ अष्ट मंगलिक थालमें ले कर इस मुजब पढे. ॥दोहा । स्वस्तिक दर्पण कुंन है, नसासन वर्धमान ॥ श्रीव नंदावर्त हे, मीनयुगल सुविधान ॥१॥ अतुल विमल खंमित नहीं, पंच वरणके साल ॥ चंडकिरण सम उज्ज्वलें, युवती रचे विशाल ॥२॥ श्रति सलक्षण तंबुलें, लेखी मंगल था। जिनवर अंगें पूजतां, आनंद मंगल गठ ॥३॥ ॥ढाल ॥श्रीराग ॥ जिन गुण गान श्रुति अमृतं॥ ए देशी ॥ मंगलपूजा सुरतरुकंद॥ ए श्रांकणी ॥ सिकि आप आनंद प्रपंचे, श्राव करमका काटे फंद ॥ मं०॥ १॥ श्रागे मद नये बिनकमें दूरे, पूरे अडगुण गये सब धंद ॥ मं॥२॥जो जिन आठ मंगलशुं पूजे, तस घर कमला केलि करंद ॥ मं० ॥३॥ श्राप प्रवचन सुधारस प्रगटे, सूरि संपदा अतिही उत्तंग ॥ मं०॥४॥ आतम अडगुण चिदघन राशि, सहज विलासी आतम चंद ॥ मं० ॥५॥ यह पढकें प्रनु आगें अष्ट मंगल चढावे ॥ इति ॥१३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003851
Book TitlePuja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1818
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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