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(५६) ॥श्रा ॥४॥ वृद्धि जाव श्रातमा, उमंग कार तुं ॥ निमित्त शुद्ध नावका, पियार कार तुं॥ श्रा० ॥ ॥५॥ ए पूजा पढ के नूषण चढावे ॥ इति ॥१॥
॥अथैकादश पुष्पगृहपूजा प्रारंजः ॥ ॥ सुगंधि फूलोंका घर बनाके हाथ में लेके मुखसे इस मुजब पढे. सो लिखते है.
॥ दोहा ॥ पुष्पघरो मन रंजनो, फूले श्रद्मुत फूल ॥ महके परिमल वासना, रहकें मंगलमूल ॥ शोजित जिनवर बीचमें, जिम तारामें चंद ॥ नवि चकोर मन मोदसे, निरखी लहे श्रानंद ॥॥
॥ढाल॥ शांति वदन कज देख नयन ॥ ए देशी॥ चंदबदन जिन देख नयन मन, अमीरस नीनो रे ॥ ए आंकणी ॥ राय बेल नव मालिका कुंद, मोघर तिलक जाति मचकुंद ॥ केतकी दमणके सरस रंग, चंपक रस नीनो रे ॥ चं०॥१॥श्त्यादिक शुज - ल रसाल, घर विरचे मन रंजन लाल ॥जाली करोखा चितरी शाल, सुरमंप कीनो रे ॥ चं० ॥२॥ गुड फुमखां लंबां सार, चंऽथा तोरण मनोहार ॥
जुवनको रंगधार, जव पातक बीनो रे ॥ चं० ॥ ॥३॥ कुसुमायुधके मारन काज, फूलघरे थापे जि
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