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कल सब साथ जले रे ॥कु०॥३॥ श्रातमानंदी जगगुरु पूजी, कुमति फंद सब दूर नगे रे ॥ पूरण पुण्यें जिनवर पूजे, आनंदरूप अनूप जगे रे॥ कु०॥ ॥ यह पढी प्रज्जु कंसें फुल माला चढावे ॥इति॥६॥
॥ अथ सप्तम अंगीरचनापूजा प्रारंजः ॥ ॥पांच वरणके फुलोंकी केसरके साथ अंगी रचे, सो हाथमें वेकें खडा रहे, मुखसे इसमुजब पढे.
॥दोहा॥ पांच वरणके फूलकी, पूजा सातमि मान ॥प्रनु अंगें अंगी रची, लहियें केवलज्ञान॥१॥ मुक्तिवधूकी पत्रिका,वरणी श्री जिनदेव॥शुद्ध तत्त्व समजे सही, मूढ न जाणे नेव ॥२॥
ढाल॥ तुम दीनके नाथ दयाल लाल॥ एदेशी॥ तुम चिद्घनचंद श्रानंद लाल, तोरे दर्शनकी बलिहारी॥तु ॥१॥ पंचवरण फुलोसें अंगीयां, विकसे ज्युं केसर क्यारी ॥तु ॥२॥ कुंद गुलाब मरुक अरविंदो, चंपकजाति मंदारी ॥तु॥३॥ सोवनजाती दमनक सोहे, मनतनु तजित विकारी ॥ तु॥४॥अलख निरंजन ज्योति प्रकोसे, पुद्गल संग निवारी ॥तु०॥५॥ सम्यग् दर्शन शानखरूपी, पूर्णानंद विहारी ॥ तु॥६॥ आतम सत्ता
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