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(५१) ॥ अथ षष्ठ पुष्पमालापूजा प्रारंजः ॥ ॥नाग, पुन्नाग, मरुया, दमणा, गुलाब, पागल, मोघरा, सेवंत्री, मोतिया, केतकी, चंपा, चंबेली, मालती, केवडा, जा, जुर प्रमुख फुलोंकी पंच वरणी सुगंधवाली माला गुंथी हाथमें लेके खडा रहे, उर मुखसे इस मुजब पढे.
॥दोहा॥ही पूजा जिन तणी, गुंथी कुसुमनी माल ॥ जिन कंठे थापी करी, टालियें पुःख जंजाल ॥१॥ पंच वरण कुसुमें करी, गुंथी जिनगुण माल॥ वरमाला ए मुक्तिकी, वरे नक्त सुविशाल ॥३॥
॥ढाल॥ पार्श्वनाथ जपत है जो जन,करम न आवे ताके नेरे ॥ ए देशी ॥ कुसुम मालसें जो जिन पूजे, कर्मकलंक नासे नवि तेरे ॥ कु० ॥ ए आंकणी॥ नाग पुन्नाग प्रियंगु केतकी, चंपक दमनक कुसुम घने रे॥ महिका नव महिका शुभ जाति, तिलक वसंतिक सब रंग हे रे ॥ कु०॥१॥ कल्प अशोक बकुल मगदंती, पामल मरुक मालती लेरे ॥ गुंथी पंच वरणकी माला, पाप पंक सब दूर करे रे ॥ कु०॥
॥नाव विचारी निजगुण माला, प्रजुसे मागे अरज करे रे॥ सर्व मंगलकी माला रोपे, बिघन स
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