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________________ (५०) फुल पंच वर्णके रकेबीमें रख के, इसमुजब पढे ॥ ॥दोहा॥ मन विकसे जिन देखतां, विकसित फूल अपार ॥ जिनपूजा ए पंचमि, पंचमि गति दा तार ॥१॥पंच वरणके फूलसें पूजे त्रिजुवन नाथ ॥ पंच विघन नवि दय करी, साधे शिवपुरसाथ ॥२॥ ढाल॥राग कहेरबा॥पास जिनंदा प्रजु, मेरे मन वसीया ॥ए देशी ॥अन् जिनंदा प्रजु, मेरे मन व. सीया ॥ ए श्रांकणी ॥ मोगर लालगुलाब मालती, चंपक केतकी निरख हरसीया ॥०॥१॥ कुंद प्रियंगु वेलि मचकुंदा, बोलसिरी जाइ अधिक दरसीया ॥१०॥२॥ जल थल कुसुम सुगंधी महके, जिन वर पूजन जिम हरि रसीया ॥ अ॥३॥ पंच बाण पीडे नहि मुझकों, जब प्रनु चरणे फूल फरसीया ॥०॥४॥ जडता दूर गई सब मेरी, पांच श्रावरण उखार धरसीया ॥ १० ॥५॥ अवर देवकू क धत्तूरा, तुमरे पंच रंग फूल वरसीया ॥१० ॥६॥ जिन चरणे सहु तपत मिटतु हे, आतम अनुनव मेघ वरसीया ॥१०॥७॥ यह पढके पंच वरणके फूल चढावे ॥ इति ॥५॥इति पंचम पुष्पारोहणपूजा समाप्त ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003851
Book TitlePuja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1818
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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