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( ए) जिनवर अंगें पूजतां, लहियें लान अपार ॥३॥
॥ढाल॥अब मोहे मांगरीयां ॥ए देशी॥ चिदानंद घन अंतरजामी ॥ अब मोहे पार उतार ॥ जिनंदजी ॥ अब० ॥ ए श्रांकणी॥ वासखेपसे पूजन करतां, जनम मरण फुःख टार ॥ जि०॥ निजगुन गंध सुगंधी महके, दहे कुमति मद मार ॥ जिन ॥१॥ जिन पूजतही अति मन रंगें, नंगे जरम अपार ॥ जि० ॥ पुद्गलसंगी उगंध नागे,वरते जयजयकार ॥ जि० ॥२॥ कुंकुम चंदन मृगमद मेली, कुसुम गंधघनसार ॥जि० ॥ जिनवर पूजन रंगें राचे, कुमति संग सब बार ॥ जि॥३॥ विजय देवता जिनवर पूजे, जीवा निगम मकार ॥ जिण श्रावक तिम जिनवासें पूजे, गृह स्वधर्मनो सार ॥ जि ॥४॥ समकितनी करणी शुन वरणी, जिनगणधर हितकार ॥ जि० ॥ आतम अनुनव रंगरंगी ला, वास यजनका सार ॥ जि० ॥५॥ यह पढकें प्रनु आगे वासदेप उडाले ॥ इति ॥४॥
॥अथ पंचम पुष्पारोहणपूजा प्रारंजः ॥ ॥ चंद, मचकुंद, दमनक, मरुवा, कुंद, सोवन, जाइ, जुश्,चबेली,गुलाब, बोलसिरी,इत्यादि सुगंधी
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