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(४०) नावना मनमें विचारा ॥ निश्चय व्यवहारी तुम धर्मे, वरनुं आनंदकारा ॥ जि०॥१॥ ज्ञान क्रिया शुद्ध अनुभव रंगें, करुं विवेचन सारा ॥ खपर सत्ता धरूं हरु सब, कर्म कलंक पहारा ॥ जि॥२॥ केवल युगल वसन आर्चतसे,मांगत हुँ निरधारा ॥ कल्पतरु तुं वंडित पूरे, चूरे करम कगरा ॥ जि० ॥३॥ नवोदधि तारण पोत मिला तुं, चिद्घन मंगलकारा॥ श्रीजिनचंद जिनेश्वर मेरे, चरण शरण तुम धारा॥ जि ॥४॥ अजर अमर कर अलख निरंजन,नंजन करम पहारा ॥ श्रात्मानंदी पापनिकंदी, जीवन प्राण श्राधारा ॥ जि०॥५॥इति ॥
॥अथ चतुर्थगंधपूजा प्रारंजः॥ अगर, चंदन, कपूर, कुंकुम, कुसुम, कस्तूरिकाका चूर्ण करके कचोली नरकें खमा रहे, और मुखसें इस मुजब पढे सो लिखतें हैं,
॥ दोहा ॥ चोथी पूजा वासकी, वासित चेतन रूप ॥ कुमति कुगंध मिटी गश्, प्रगटे आतमरूप ॥ ॥१॥सुमती अति हर्षित जइ, लागी अनुनव वास ॥ वास सुगंधे पूजतां, मोह सुनटको नाश ॥ ॥२॥ कुंकुम चंदन मृगमदा, कुसुम चूर्ण घनसार ॥
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