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(२४) मेल मिली ॥ सि ॥ ६॥ गुणानंत करीजें रे, वर गित वरग वली ॥ सि ॥७॥ नन एक प्रदेशे रे, सब सुख पुंज जिली ॥ सि ॥ ७ ॥ लोकालोक न मावे रे, जिनवर तत्र चली ॥ सि ॥ए ॥ बंधन बेद असंगा रे, पूर्व प्रयोग फली ॥ सि० ॥ १० ॥ गति करण निदाना रे, सुमति संग नली ॥ सि ॥ ॥११॥ हस्तिपाल श्राराधी रे, जिनपद सिक तुली ॥ सि० ॥ १५ ॥ प्रजु आत्मानंदी रे, पूजत कुमति टली ॥ सि ॥ १३ ॥ काव्यं ॥ अतिशया ॥ मंत्रः ॥ ॐ ही श्री पर०॥ सिकाय जला॥य॥इति॥२॥
॥अथ तृतीय प्रवचनपदपूजा प्रारंजः ॥
॥दोहा॥त्रीजे प्रवचनपूजियें,करी कुमतिसंग दूर॥ मिथ्या मत टाली सवे, जन्म मरण मुख चूर ॥१॥ जाव रोगकी औषधी, अमृतसिंचनहार ॥ जव जय ताप निवारिणी, अरिहंत पद फलकार ॥२॥
॥राग वढंस ॥ प्रवचन पद जवपार उतारे, पूजो नवि मनरंग रे ॥ प्रव० ॥ ए आंकणी ॥ अमृत रस नरी ध्याने, चिदघन रंग रंगील रे ॥ कुमति जाल सब बिनकमें जारे, प्रगट अनुजव लील रे ॥ प्र० ॥१॥ तीनशो साठ तीन (३६३ ) मतधारी,
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