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(२३) ॥ काव्यं ॥ पुतविलंबितवृत्तम् ॥ अतिशयादिगुणाधिवदान्यकं, जिनवरेंअपदस्य निदानकम्॥निखि लकर्मशिलोच्चयसूदनं,कुरुतविंशतिसंपदपूजनम्॥१॥ मंत्रः ॥ ही श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म जरामृत्युनिवारणाय श्रीमते अर्हतेजलादिकं यजामहे खाहा ॥था काव्य,तथा मंत्र,प्रत्येक पूजादी कहेवा.
॥अथ द्वितीय सिझपदपूजा प्रारंजः॥ ॥दोहा॥ तनु त्रिजाग दूरे करी,घन स्वरूप अघनाश॥ज्ञान वरूपी अगमगति, लोकालोक प्रकाश ॥१॥ श्रदर अमर अगोचरा, रूप रेख विन लाल ॥ जे पूजे सो नवि लहे, अरहन पद उजमाल ॥२॥ ॥कान्हा में नहि रहेणारे,तुमचेरेसंगचलुगए देशी॥
॥सिक अचल आनंदी रे,ज्योतिमें ज्योति मिली। ए आंकणी ॥ श्रज अलख अमूरति रे, निज गुण रंग रखी ॥ सि ॥१॥ शिव अजर अनंगी रे, करमको कंद दली॥ सि॥२॥ समय एकमें त्रिपदी रे, नास थिर आविर वली ॥ सि॥३॥छजु एक समय गतिका रे, अनंत चतुष्टय मिली ॥ स० ॥ ४ ॥ गुण श्क त्रिश धारी रे, निर्मल पाप गली ॥ सि ॥ ५॥ त्रिहुं कालके देवा रे, सब सुख
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