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________________ ( 22 ) पंच अष्ट सत्तार ॥ द्रव्यार्चनविधि जाणियें, इगविस विधि विस्तार ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ दो नयणांदा मारया मरजादा परदेशी डा ॥ ए देश ॥ ॥ ॥ अरिहंत पद मनरंग, चिदानंद अरिहंत पद० ॥ ए यांकणी ॥ चिदानंदघन मंगलरूपी, मिथ्यातिमिर दिणंद ॥ चि० ॥ ० ॥ १ ॥ चौतिस अतिशय पैतिस वाणी, गुण बारे सुखकंद ॥ चि० ॥ श्र० ॥ २ ॥ महागोप महामाहण कहियें, काटे नव जव फंद ॥ चि० ॥ ० ॥ ३ ॥ निर्यामक सबवाह जणी - जें, जवि चकोर मनचंद ॥ चि० ॥ ० ॥ ४ ॥ चार निक्षेप रूप जग रंजन, जंजन करम नरिंद ॥ चि०॥ ० ॥ ५ ॥ अवर देव वामा वश कीने, तूं निकलंक महिंद ॥ चि०॥० ॥ ६ ॥ ज्ञायक नायक शुजगति दायक, तुं जिन चिदुघन वृंद ॥ चि० ॥ ० ॥ ७ ॥ देवपाल श्रेणिक पद साधी, अरिहंत पद निपजंद ॥ चि० ॥ ० ॥ ८ ॥ सर्व शिवंकर ईश निरंजन, गत कलिमल सब धंद ॥ चि० ॥ ० पंच कल्याणक जगमें, करे उद्योत ० ॥ १० ॥ श्रतम निर्मल जाव त्रिभुवन इंद ॥ चि० ॥ ॥ ॥ जिनके मंद ॥ चि०॥ करीने, पूजो ० ॥ ११ ॥ इति ॥ १ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003851
Book TitlePuja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1818
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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