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________________ (१०) लोचे रे ॥ वी० ॥६॥इति मुनिपद पूजा समाप्ता॥ ॥ षष्ठ सम्यक्तत्व दर्शन पद पूजा प्रारंजः॥ ॥ काव्यं, अवज्रावृत्तम् ॥ जिणुत्ततत्ते रुश् लरकणस्स, नमो नमो निम्मलदंसणस्स ॥ ॥तुजंगप्रयातवृत्तम् ॥ विपास हरवासना रूप मिथ्या, टले जे अनादि अजे जेम पथ्या ॥ जिनोक्तं हो सहजथी श्रद्दधानं, कहियें दर्शनं तेह परमं निधानं ॥१॥ विना जेहथी ज्ञानमझानरूपं, चरित्रं विचित्रं जवारण्यकूपं ॥ प्रकृति सातने उपशमें दय ते होवे, तिहां आपरूपें सदा आप जोवे ॥२॥ ॥ ढाल, उलालानी देशी ॥ सम्यग्दर्शन गुण नमो, तत्त्व प्रतीत स्वरूपो जी ॥ जसु निरधार वनाव बे, चेतनगुण जे अरूपो जी ॥१॥ जलालो ॥ जे अनुप श्रद्धा धर्म प्रगटे, सयल परईहा टले ॥ निज शुझसत्ता प्रगट अनुनव, करण रुचिता ऊबले ॥ बहु मान परिणति वस्तुतत्त्वे, अहव तसु कारणपणे ॥ निज साध्यदृष्टे सर्व करणी, तत्त्वता संपति गणे ॥२॥ ___॥ पूजा ॥ ढाल ॥ श्रीपालना रासनी देशी॥शुद्ध देव गुरुधमे परीदा, सदहणापारणाम ॥ जेहपामीजें तेह नमीजें, सम्यक्दर्शन नाम रे ॥ ज० ॥ सि ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003851
Book TitlePuja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1818
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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