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________________ जवसग्गदरस्तवन अर्थसहित. य ? तो के ( मंगल के० ) दुःखनो विलय, उपद्रवनिवृत्ति तेने मंगल क हियें तथा ( haru h० ) सुखनी वृद्धि तेना ( वासं के० ) प्रवास वे. या गाथामां लघु बत्रीश ने गुरु पांच, मली सामग्रीश अक्षरो बे ॥१॥ हवे मंत्रगर्जित ऐवुं जे या स्तवन, तेनो महिमा कहे बे. विसहरफुलिंगमंतं, कंठे धारे जो सया मर्ज ॥ तस्स गढ़ रोग मारी, डुठजरा जंति नवसामं ॥ २ ॥ अर्थः- ( जो के० ) जे ( मणुर्ज के० ) मनुष्य, श्री पार्श्वनाथना नाम गर्जित एवो ( बिसहरफुलिंगमंतं के० ) विषधरस्फुलिंगनामा अढार श्र करनो मंत्र जे एहीज स्तोत्रमांथी निकले बे, ते मंत्रप्रत्यें (सया के० ) सदा सदैव निरंतर ( कंठे के० ) कंठने विषे ( धारेश के० ) धरे, स्मरे, ( तस्स के० ) तेहना (गह के० ) सूर्यादिक ग्रह, ( रोग के० ) कफ कुष्ठजलोदरादिक रोग, (मारी के०) मर्ती उपद्रव, ( डुजरा के० ) पुष्ट डुन एवा शत्रु तथा एकांतरिया प्रमुख ज्वर, ते ( उवसामं के० ) उप शमा प्रत्यें एटले नाशप्रत्यें ( जंति के० ) पामे. या गाथामां त्रीश लघु ने बे गुरु, मली श्रामत्रीश अरो बे ॥ २ ॥ ॥चिन दूरे मंतो, तु पणामो वि बहुफलो दोइ ॥ नर तिरिसुवि जीवा, पावंति न डुकदोगचं ॥ ३ ॥ अर्थः- अथवा हे नाथ ! ए ताहारो जे ( मंतो के० ) विषधर स्फुलिंग नामें जे मंत्र, ते तो ( दूरे के०) दूर एटले बेगलो (चिहन के० ) तिष्ठतु ए ले रहो. पण (तु के ० ) तहारो ( पणामोवि के० ) प्रणाम एटले नम स्कार करवो, ते पण (बहुफलो के० ) बहुफल एटले घणां एवा सौभाग्य, रोग्य, धन, धान्य, कलत्र, पुत्र, द्विपद, चतुः पद, चक्रवर्ती ने इंद्रादिकनी पदवीना फलनोपनार ( होइ के० ) बे, तेहीज कहियें बैयें. इह लोकना फलनुं तो शुंकहेतुं ? पण तमोने नमस्कार करनार जे सम्यग्रदृष्टि जीव बे, ते प्रायेंः वैमानिकदेवोमांउत्पन्न घाय बे ने कदाचित् पूर्ववायु बतां नवपरंपरायें करीने जीव, ( नर तिरिए सुवि के० ) नर एटले मनुष्यने विषे अथवा तिर्यंचने विषे उत्पन्न थाय बे, तो पण त्यां तेने शारीरीक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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