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________________ ६२ प्रतिक्रमण सूत्र. नमस्कार, अनु एटले अस्तु नवतु ए पदवडे हो, तथा णं कार जे बे, ते वाक्यालंकारने अर्थे , जेम अलंकारें करी स्त्री शोने, तेम एंकारें करी वाक्य शोने , ते नमस्कार कोने हो? तो के (अरिहंताणं के०) श्री अरी हंतने हो. अहीं जूदा जूदा त्रण पाठ , एक तो इंसादिक देवोनी करेली पूजाने योग्य तेने अरहंत कहियें, बीजो कर्मरूप वैरीने हण्या, माटें अरिहंत कहियें, त्रीजो फरी संसारमा अवतरवु नयी माटे अरुहंत कहियें, तेने नमस्कार था. हवे ते श्री अरिहंतजी तो नामादिक ने करी अनेक प्रकारें बे, माटें अहीं नावअरिहंतने नमस्कार करवाने अर्थे आगल, पद कहे . ( नगवंताणं के०) नगवद्न्यः एटले जगवंतने हो. ए जग शब्द, ते प्रकारें बे. एक समस्त ठकुराइ, वीजुं रूप, त्रीजुं यश, चोथी लक्ष्मी, पांचमो धर्म, अने हो प्रयत्न, ए ड वानां अरिहंतमा उत्कृष्ट . तिहाँ नक्ति नम्रतायें करीने देवोयें शुजानुबंधी माहापातिहार्य करण लक्षण, तेने समग्र ऐश्वर्य कहियें. तथा सकल स्वखप्रनाव विनिम्मित अंगुष्ठरूप अंगार निदर्शनातिशयें करी जे सिफ, तेने रूप कहियें, तथा राग, द्वेष, परिसह, उपसर्ग सहनरूप पराक्रमथकी उत्पन्न थयुं जे त्रैलोक्यानंदकाल प्रतिष्ठ, तेने यश कहियें, तथा घातिकर्मना उछेदरूप पराकमें करी प्राप्त थयुं जे केवल लोकोत्तरनिरतिशय सुख, तेनी संपत्तियें करी युक्त तेने उत्कृष्टलक्ष्मी कहियें, तथा सम्यग्दर्शनादि रूप अने दान, शील तपोना वनामय, तेने धर्म कहियें, तथा परम वीर्ये करी उत्पन्न थयुं जे एक रात्रि क्यादिक महाप्रतिमा नावहेतु, तेने प्रयत्न कहियें, एक प्रकारचं ने लग जेमने, ते जगवान् कहियें, तेमने नमस्कार था. एवा नगवंत ते विवेकी पुरुषोने स्तववा योग्य बे, माटें ए बे पदनी प्रथम स्तोतव्य संपदा जाणवी. एमां लघु तेर अने गुरु एक, सर्व मली चौद अदरो ॥१॥ हवे स्तववा योग्यनो सामान्य हेतु कहेवा माटें कहे डे. ॥आगराणं, तिबयराणं, सयंसंबुझाणं ॥३॥ अर्थः-वली ते श्री अरिहंत केहेवा बे? ए प्रकारे श्रागल पण हवे पड़ीना सर्व पदोने विषे कहे. (आगराणं के०) आदिकरेन्यः एटले सर्व तीर्थंकर पोत पोताना तीर्थे छादशांगीनी आदिना करनार , तेमाटें आदिकर कहि यें. यद्यपि ए हादशांगी, निरंतर जे तथापि तेमां अर्थनी अपेदायें तो नित्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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