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________________ ५६ प्रतिक्रमणसूत्र. सामायिकविधिं लीबूं विधिं पारिज, वाध करता जे कोइ अविधि हुउँ होय, ते सवि हु मन वचन कायायें करी मिबामि उकडं ॥१॥ इति ॥१०॥ अर्थः-(जाव के ) ज्यां सुधी ( मणे के०) मन, एटले जीव ते (नियमसंजुत्तो के० ) सावध व्यापारना नियम एटले पञ्चरकाणने विषे संयुक्त ( होश् के० ) होय, एटले सम्यक् प्रकारें जोडेलो होय. वली (सामाश्अवयजुत्तो के०) सामाश्क व्रतने विषे संयुक्त होय, त्यां सुधी ए जीव, ( असुहंकम्मं के०) अशुल कर्मने (बिन्न के ) छेदे, (जत्ति आवारा के०) जेटली वार (सामाश्य के ) सामायिक करे, तेटली वार अशुन कर्मप्रत्ये छेदे. अथवा ज्यां सुधी सावद्य व्यापारने विषे मनमांहे नियम संयुक्त होय, तेटली वार सामायिक व्रतनो धणी कहेवाय ते जेटली वार सामायिक व्रत लीये, तेटली वार अशुल कर्मने बेदे ॥ १॥ (उ के ) तु एटले वली (जम्हा के० ) जेमाटें (सामाश्शं मिकए के०) (सामायिक करती वखत (सावर्ड के०) श्रावक जे , ते (समणोश्व के०) श्रमण एटले साधु समान (हवर के०) होय, (एएणकारणेणं के० ) ए कारणे ( बहुसो के०) घणी वार, ( सामाश्यं के०) सामा यिकप्रत्ये जे तत्त्वना जाण होय, ते ( कुडा के) करे ॥२॥ अहींयां केटलाएक एम कहे जे के सामायिक, दिन प्रत्ये उन्नय कालज करियें, पण अधिक न करिये, तेंने निषेधे , जे नणी “सामाश्यं मिउकए” ए. गाथा श्री नम्बाहुस्खामी चौद पूर्वधरप्रणीत आवश्यकनियुक्तिमांहेली ने, एमां सामायिक करतां श्रावक, मनें, वचनें अने कायायें करी करे नहीं, करावे नही,ते नणी साधु समान तो होय, पण साधु निटोल नहीं कहेवाय. अने श्रावकने अनुमति मोकली , तथा श्रावकें देशथकी पोसह लीधो होय अने सामायिक बते पण आधाकर्मी आहार गृहस्थने मोकलो मूक्यो , जे जणी श्रीनिशीथचूर्णीमध्ये एम कडं जे, जे “जंच उदिछ कहें, तं कम सामाश्न विचं जश्य” अने साधु तो आधाकर्मी आहार कोश् पण रीतें लीये नही, ते जणी साधु निटोल न कहेवाय, तो पण सामायिकने विषे रहेला श्रावकने साधु सरखो कहियें. ए कारणमाटें “बहुसो सामाश्यं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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