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________________ ५४ प्रतिक्रमण सूत्र. ते (सिडिं के०) सिकि एटले मुक्ति ते (मम के०) मुझने (दिसंतु के०) यो, श्रापो ॥७॥श्रा गाथामां लघु तेत्रीश, अने गुरु चार, सर्व मली सा. मंत्रीश अदरो बे, अने ए चनविसाबने विषे प्रथमनो एक श्लोक अने पनवाडेनी ब गाथा मली सात गाथा , पद अहावीश बे, तेमां लघु अक्षर बशें उंगणत्रीश, तथा गुरु अदर सत्त्यावीश, मली सर्वादर बशें ने बप्पन्न बे. तथा सवलोएना चार अदर एनी साथें मेलवीयें, तेवारे बशें ने साठ अदरो थाय. इति नामस्तवसूत्रार्थः ॥७॥ ॥ अथ करेमि जंते, अथवा सामायिकनुं पञ्चरकाण ॥ ॥ करेमि नंते सामाश्यं, सावऊं जोगं पच्चरकामि, जाव नियमं पङ्गुवासामि, उविहं, तिविदेणं, मणेणं, वायाए, कारणं, न करेमि. न कारवे मि, तस्स नंते, पडिकमामि, निंदामि, गरिहा मि, अप्पाणं वोसिरामि ॥१॥ इति ॥५॥ अर्थः-(नंते के) हे नदंत, जयांत, नवांत, पूज्य, एटले सुखकारककल्याण कारकपणाथकी नदंत कहियें तथा सात प्रकारना नयनो अंत करवाथकी जयांत कहीयें तथा चातुर्गतिकरूप संसारनो उछेद करवाथकी नवांत कहियें तथा पूजवा योग्य माटें पूज्य कहियें एवी रीतें गुरुनु आमंत्रण करीने सर्व कार्य करवां. हवे कहे जे के, तमारा समीप वर्तमान काल आश्रयी (सामाश्यं के०) सामायिकप्रत्यें एटले (सम के) ज्ञानादिक गुण तेनो ( आय के ) लान ने जेने विष अथवा (सम के ) रागोषरहित एवो जे जीव, तेने सम्यग् ज्ञानादिक गुणनो डे (आय के ) लाल जेने विषे ते रूप जे व्रत, ते सामायिक व्रत कहियें अथवा समता परिणामरूपप्रशमसुख तप सामायिक प्रत्ये (करेमि के०) हुं करूं एटले समता परिणाम आएं! वली अनागत काल आश्रयी तो ( सावऊं के ) सावा एमां अवद्य एटले पाप, तेणें करी स एटले सहित एवा जे ( जोगं के०) योग एटले मन, वचन अने कायाना व्यापार, अर्थात् पापसहित जे मन, वचन कायाना योग, ते प्रत्ये ( पच्चरकामि के० ) हुँ पञ्चकुं बुं, निषेधुं बुं. एटले Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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