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________________ ५६४ प्रतिक्रमण सूत्र. यम शीयलें अलंकस्या रे लो ॥शाहां॥ फूटया रसजर फूल्या अंब कदंब जो, जाणुं रे गुणशील वन हसी रोमांचीयो रे लो ॥ हां ॥ वाया वाय सुवाय तिहां अविलंब जो, वासे रे परिमल चिहुं पासें संचियो रे लो ॥३॥ हां॥ देव चतुर्विध आवे कोमा कोडि जो, त्रिगमो रे मणि हेम रजतनो ते रचे रे लो ॥हा॥ चोशठ सुरपति सेवे होमाहोम जो, आगे रे रस लागे इंशाणी नचे रे लो ॥४॥हांामणिमय हेम सिंहासन बेग या प जो, ढाले रे सुर चामर मणिरत्ने जड्यां रे लो ॥ हां ॥ सुणतां उंछ निनाद टले सवि ताप जो, वरसे रे सुर फूल सरस जानु अड्यां रे लो॥५॥ ॥हा॥ ताजे तेजें गाजे घन जेम ढुंब जो, राजे रे जिनराज समाजे धर्म ने रे लो ॥हां निरखी दरखी आवे जनमन झुंब जो, पोषे रे रसन पडे घोषे नर्ममां रे लो ॥६॥ हां आगम जाणी जिननो श्रेणिक राय जो, आव्यो रे परवरियो हय गय रथ पायगे रे लो॥हा॥ देश प्रददि णा वंदी बेगे गय जो, सुणवा रे जिनवाणी महोटे नायगे रे लो ॥७॥ ॥हां॥ त्रिभुवन नायक लायक तव लगवंत जो, आणी रे जन करुणा धर्मकथा कहे रे लो ॥ हां ॥ सहज विरोध विसारे जगना जंतु जो, सुणवा रे जिनवाणी मनमां गहगहे रे लो ॥ ॥ इति ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ वालम वहेला रे आवजो ॥ ए देशी ॥ ॥ वीर जिनवर एम उपदिशे, सांजलो चतुर सुजाण रे ॥ मोहनीनिं दमां कां पमो, उलखो धर्मनां गण रे ॥ विरति ए सुमति धरि आदरो ॥१॥ ए आंकणी ॥ परिहरो विषय कषाय रे ॥ बापमा पंच प्रमादथी, कां पमो कुगतिमां धाय रे ॥वि॥॥ करी शको धर्मकरणी सदा, तो करो ए उपदेश रे ॥ सर्वकालें करी नवि शको, तो करो पर्व सुविशेष रे॥विण ॥३॥ जूजुश्रा पर्व षटनां कह्यां,फल घणां श्रागमें जोय रे॥ वचन अनुसारें आराधतां, सर्वथा सिद्धि फल होय रे ॥ विण ॥जीवने आयु परनव तणु, तिथि दिने बंध होय प्राय रे ॥ तेह नणी एह आराधतां, प्राणीयो सजति जाय रे ॥ वि० ॥५॥ तेहवे अष्टमी फल तिहां, पूजे गौतम स्वामि रे ॥ नविक जीव जाणवा कारणे, कहे वीर प्रजु ताम रे ॥ वि० ॥६॥ अ ष्टमहासिद्धि होय एदथी, संपदा आउनी बृद्धि रे ॥ बुद्धिना आठ गुण संपजे, एहथी आठ गुण सिकि रे ॥ विण ॥॥ लान होय आठ पमिहा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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