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प्रतिक्रमण सूत्र. ॥३॥पूर्व उत्तरमुख पूजा जाण, बीजी दिशें हुए करता हाण ॥ नवाग पूजानो विधि एह, विधि करतां होय निर्मल देह ॥४॥पग जंघ ने हाथ बे तणी, खंना मस्तकनी पांचमी नणी ॥ नाल कंठ हृदय ए जाण, उ दरें नवमुं तिलक वखाण ॥ ५॥ चंदन विण पूजा नवि होय, वासपूजा प्रनातें जोय ॥ कुसुमपूजा मध्यान्हें करो, सांजे धूप दीप श्रादरो ॥६॥धूप उकेवो माबे पास, जमणे पासें दीप प्रकाश ॥ ढोj आगल मूको सही, चैत्यवंदन करो दक्षिण रही ॥॥ हाथथकी जे जूमियें पडे, पग लागे म लीन आनडे ॥ मस्तकथी ऊंचुं परिहरो, नानी थकी नीचं मत करो॥ कीडे खाधुं तजीयें फूल, एम फलादिक ढोये अमूल ॥ फूल पांखमी नवि दियें, कलिका कदिये नवि नेदीयें ॥ ए॥ गंध धूप श्राखे पाणीयें, फूल दीप बलि फल जाणीयें ॥ पाणी आठमुं सुंदर सही, आठ प्रकार। पूजा कही ॥१॥ शांतिकारण उज्ज्वल वस्त्र, लाजरकारणे पीत पवित्र ॥ वैरी कींपवा पहेरो श्याम रातुं वस्त्र ते मंगल काम ॥१९॥ पंच वर्ण वस्त्रे होय सिझ, खंडित सांध्यां वस्त्र निषिक ॥ पद्मासनने मौनें रही, मुखको श पूजा विधि कही ॥१२॥ ए विधि पूजा कीजें सदा,जिम पामीजें सुख संपदा ॥ आनंद विमल पंडितनो दास, प्रीतिविजय प्रणमे उबास ॥१३॥ इति ॥
॥ अथ अष्टापदतीर्थस्तवन ॥ ॥ तीरथ अष्टापद नित्य नमीयें, ज्यां जिनवर चउवीश जी ॥ मणिमय बिंब जराव्यां जरतें, ते वंदूं नित्य दीस जी ॥ती॥१॥ निज निज देह प्रमा में मूर्ति, दीपडे मन मोहे जी॥ चत्तारि अठ दश दोय इणी परें, जिन चो वीशे सोहे जी ॥ ती ॥२॥ बत्रीश कोशनो पर्वत ऊंचो, आउ तिहां पाव मीयो जी ॥ एकेकी चउकोश प्रमाणे, नवि जाये कोश् चमीयो जी॥ती० ॥३॥ गौतमखामी चमीया लब्धे, वांद्या जिन चोवीश जी ॥ ॥जगचिंता मणि स्तवन त्यां कीधु, पूगी मननी जगीश जी ॥ती॥४॥ तन्नव मोद गामी जे मानव, ए तीरथने वांदे जी ॥ जंघा विद्याचारण वांदे, ते तो ल ब्धिप्रसादें जी ॥ ती० ॥॥ शाठ सहस सुत सगर चक्रीना, ए तीरथ से वंतां जी ॥ बारमा देवलोकें ते पहोता, लेहशे सुख अनंतां जी ॥ ती० ॥ ॥६॥ कंचनमय प्रासाद यहां डे, वंदन करवा योग्य जी ॥ ए अधिकार ने श्रावश्यकसूत्रं, जो जो दश् उपयोग जी ॥ ती॥॥ जिहां आदीश्वर मु
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