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प्रतिक्रमण सूत्र. जं ॥ खटगणुं धातकी चैत्य जुहारें, बत्रीस गणे5 फल पुरस्कल विहारे ॥ न ॥ पु० ॥२॥ तेथी तेरशगणुं फल मेरु चैत्य जूहारें, सहस गणेरुं फल समेतशिखरे ॥ ज०॥ स० ॥ लाख गणेरुं फल अंजन गिरि जूहारें, दश लाख गणेरुं फल अष्टापद गिरनारें ॥ ज०॥०॥३॥ कोडि गणेरुं फल श्रीसिझाचल नेटें, जेम रे अनादिनां पुरित उमेटें ॥ ज०॥ कु०॥ जाव अनंतें अनंत फल पावे, ज्ञान विमल सूरि एम गुण गावे, ॥ना ए॥४॥ ॥ अथ श्री समेतशिखर गिरिनुं स्तवन ॥ क्रीडा करी घेर
वियो ॥ ए देशी॥ ॥ समेत शिखर जिन वंदियें, महोटुं तीरथ एह रे॥ पार पमाडे नव तणो, तीरथ कहीये तेह रे ॥ स० ॥१॥ अजितथी सुमति जिणंद लगें, सहस मुनि परिवार रे॥ पद्मप्रनु शिव सुख वस्या,त्रणशे अड अणगार रे॥ स॥॥ पांचशे मुनिपरिवारशें, सुपास जिणंद रे ॥ चंप्रनु श्रेयांस लगें, साथे सहस मुणिंद रे ॥ स ॥३॥ हजार मुनिराजशु, विमल जिनेश्वर सिकां रे ॥ सात सहसशुं चउदमा, निज कारज वर कीधारे ॥ ॥ स ॥४॥ एकशो आठशुं धर्मजी, नवशेशुं शांतिनाथ रे ॥ कुंथु अर एक सहसशं, साचो शिवपुर साथ रे ॥ स ॥ ५॥ महिनाथ शत पांच शुं, मुनि नमि एक हजार रे ॥ तेत्रीश मुनियुत पासजी, वरिया शिव सुख सार रे ॥स॥ ६॥ सत्तावीश सहस त्रणशें, उपर जंगणपंचास रे ॥ जिन परिकर बीजा केश, पाम्या शिवपुर वास रे ॥ स० ॥ ॥ ए वीशे जिन एणे गिरि, सिझा अणसण लेई रे ॥ पद्मविजय कहे प्रणमीनें,पास शामल, चेई रे ॥ स० ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ समेतशिखरजीतुं स्तवन ॥ ॥जश् पूजो लाल, समेत शिखरगिरि उपर पासजी शामला ॥ जिन न क्ति लाल, करतां जिनपद पावे टले नव आमला ॥ ए आंकणी ॥री पाली दर्शन करीयें, नव नव संचित पातक हरियें, निज बातम पुएयरसें नरि यें ॥ ज० ॥१॥ ए गिरिवर नित्य सेवा कीजें, जिम शिव सुखडां करमां लीजें, चिदानंद सुधारस नित्य पीजें ॥ ज० ॥२॥ जिहां शिवरमणी वरवा आव्या, अजितादिक वीशे जिनराया, बहु मुनिवर युत शिव व धू पाया ॥ जय० ॥३॥ तेणें ए उत्तम गिरि जाणो, करो सेव आतम
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