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प्रतिक्रमण सूत्र.
॥ अथ मंगल चार ॥ ॥ सिझार्थ नूपति सोहे दात्रियकुमें, तस घेर त्रिशला कामिनी ए॥ गजवर गामिनी पोढिय नामिनी, चउद सुपन लहे जामिनी ए॥ त्रुटक ॥ जामिनी मध्ये शोलतां रे, सुपन देखे बाल॥मयगल वृषन ने केसरी, कमला कुसुमनी माल ॥छ दिनकर ध्वजा सुंदर, कलश मंगल रूप ॥ पद्मसर जलनिधि उत्तम, अमरविमान अनूप ॥ रत्ननो अंबार उज्ज्वल, वन्हि निर्धूम ज्योत ॥ कल्याण मंगलकारी माहा, करत जग उद्योत ॥ चौद सुपन सूचित विश्वपूजित, सकल सुखदातार ॥ मंगल पहेढुं बोलीयें ए, श्री वीर जगदाधार ॥१॥ मगध देशमा नयरी राजगृही, श्रेणिक नामें नरेशरू ए॥ धनवर गोवर गाम वसे तिहां, वसुन्नूति विप्र मनोहरु ए ॥त्रुटकमनोहरु तस मानिनी, पृथवी नामें नार ॥ अनूति आदें अजे,त्रण पुत्र तेहने सार ॥ यज्ञकर्म तेणें आदमु, बहु विप्रने समुदाय॥ तेणें समे तिहां समोसस्या, चोवीशमा जिनराय ॥ उपदेश तेहनो सांजली, लीधो संयम नार ॥ अगीयार गणधर थापीया, श्री वीरें तेणी वार ॥ अनूति गुरुनगतें थयो, महा लब्धिनो नंमार ॥ मंगल बीजुं बोलीयें, श्री गौतम प्रथम गणधार ॥॥ नंद नरिंदनो पामली पुरवरें, सकमाल नामें मंत्री सरू ए॥लाबलदे तस नारी अनुपम, शीयलवती बहुसुखकरू ए॥त्रुटक॥ सुखकरू संतान नव दोय, पुत्र पुत्री सात ॥ शीयलवंतमां शिरोमणि, थूविना जग विख्यात ॥ मोहवशें वेश्यामंदिर, वस्या वर्षज बार ॥ जोग नली पेरें नोगव्या, ते जाणे सहु संसार ॥ शुद्ध संयम पामी वि षय वामी, पामी गुरु आदेश ॥ कोश्याआवासें रह्या निश्चल, मग्यो नहिं लवलेश ॥ शुद्ध शीयल पाले विषय टाले, जगमा जे नर नार ॥ मंगल त्रीजुं बोलीयें, श्री धूलिन अणगार ॥३॥ हेम मणि रूप मय घ मित अनुपम, जडित कोशीसां तेजें ऊगे ए ॥ सुरपतिनिर्मित त्रण गढ शोनित, मध्ये सिंहासन जगमगे ए॥ त्रुटकाऊगमगे जिन सिंहासनेए, वा जिन कोमा कोम॥ चार निकायना देवता, ते सेवे बेहु कर जोम ॥ प्रातिहा रज आठशुं रे, चोत्रीश अतिशयवंत ॥ समवसरणे विश्वनायक, शोने श्री जगवंत ॥ सुर नर किन्नर मानवी, बेठी ते पर्षदा बार ॥ उपदेश दे अ रिहंतजी, धर्मना चार प्रकार ॥ दान शीयल तप जावना रे, टाले सघलां
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