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प्रतिक्रमण सूत्र. संतोष वृत्ति धरो चितमांहि, राग द्वेषधी दूर था उचाहिं ॥१॥पड्या मोह ना पासमां जेह प्राणी, शुद्धतत्त्वनी वात तेणें न जाणी ॥ मनु जन्म पामी वृथा कां गमो डो, जैनमार्ग बंमी जुलां कां नमो बो॥॥अलोनी अमानी नीरागी तजो बो, सलोनी समानी सरागी नजो गे॥ हरि हरादिअन्य थी शुं रमो बो, नदी गंग मूकी गलीमां पमो बो॥३॥ केश देव हाथे असि चक्रधारा, केश देव घाले गले रुंढमाला ॥ केश देव उत्संगें राखे वामा, केश देव साथें रमे वृंद रामा ॥४॥ केश देव जपे लेश जापमाला, केश मांसनदी महावीकराला ॥केश् योगिणी नोगिणी नोग रागें, केश रुजाणी बागनो होम मागे ॥५॥ श्स्या देव देवी तण। आश राखे, तदा मुक्तिनां सु खने केम चाखे ॥ जदा लोलना थोकनो पार नाव्यो, तदा मधनो बिंदु मन्न नाव्यो ॥६॥ जेह देवलां आपणी श्राश राखे, तेह पिंमने मन्नगुं आय चाखे ॥ दीन हीननी नीम ते केम नांजे, फुटो ढोल होये कहो के म वाजे ॥ ॥ अरे ! मूढ जाता नजो मोददाता, अलोजी प्रजुने नजो विश्वख्याता ॥ रत्न चिंतामणि सारिखो एह साचो, कलंकी काचना पिंग शुं मत्त राचो ॥॥ मंदबुद्धिशुं जेह प्राणी कहे , सवि धर्म एकत्व नू लो जमे ॥ किहां सर्षवा ने किहां मेरु धीरं, किहां कायरा ने किहां शूरवी रं॥ए॥ किहां स्वर्णथालं किहां कुंचखंडं, किहां कोऽवा ने किहां खीर मं ॥ किहां दीरसिंधु किहां दारनीरं, किहां कामधेनु किहां बागखीरं ॥ १०॥ किहां सत्यवाचा किहां कूमवाणी, किहां रंकनारी किहां राय राणी ॥ किहां नारकी ने किहां देवनोगी, किहां छ देही किहां कुष्ठरोगी ॥ ११॥ किहां कर्मघाती किहां कर्मधारी, नमो वीरस्वामी नजो अन्य वारी ॥ जिसी सेजमां स्वप्नथी राज्य पामी, राचे मंदबुद्धि धरी जेह खा मी॥१२॥ अथिर सुख संसारमा मन्न माचे, ते जना मूढमां श्रेष्ठ शुं श्ष्ट गजे ॥ तजो मोह माया हरो दंजरोषी, सजो पुण्य पोषी नजो ते अ रोषी ॥१३॥ गति चार संसार अपार पामी, आव्या आश धारी प्रजु पाय खामी ॥ तुहीं तुहीं तुहीं प्रजु परमरागी, जव फेरनी शृंखला मोह नांगी ॥१४॥मानियें वीरजी अर्ज के एक मोरी, दीजें दासकू सेवना चरण तोरी॥ पुण्य उदय हुउँ गुरु आज मेरो, विवेके लह्यो में प्रजु दर्श तेरो॥१५॥ति॥
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