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________________ चैत्यवंदनानि ५१ए त्रिलोकना नाथने शुं तजो बो, पड्या पाशमां नूतने का जजो दो ॥ सुरधेनु बंमी अजा शुं अजो डो, महापंथ मूकी कुपंथें व्रजो डो॥॥ तजे कोण चिंतामणि काचमाटें, ग्रहे कोण रासनने हस्ति साटें ॥ सुर सुम उपानी कुण आक वावे, महामूढ ते आकुला अंत पावे ॥३॥ किहां कांकरो ने किहां मेरुशृंगं, किहां केशरी ने किहां ते कुरंग ॥ किहां विश्वनाथ किहां अन्य देवा, करो एकचित्तें प्रनु पास सेवा ॥ ४ ॥ पूजो देव प्रनावती प्राणनाथ, सह जीवने जे करे ने सनाथं ॥ महा तत्त्व जाणी सदा जेह ध्यावे, तेनां फुःख दारिज दरें पलावे ॥५॥ पामी मानु षोने वृथा कां गमो डो, कुशीलें करी देहनें कां दमो बो॥नहीमुक्तवासं विना वीतरागं, जजो जगवंतं तजो दृष्टिरागं ॥ ६॥ उदयरत्न लांखे सदा हेत आणी, दयाजाव कीजें प्रनु दास जाणी॥ आज माहरे मोतीडे मेह वुझा, प्रजु पास शंखेश्वरो आप तूग ॥ ७ ॥इति ॥ ॥ अथ पार्श्वजिनस्तोत्रं लिख्यते ॥ ॥ कल्याणकेलिसदनाय नमोनमस्ते, श्रीमत्सरोजवदनाय नमोनम स्ते ॥ रागारिवारकदनाय नमोनमस्ते, वजानिरामरदनाय नमोनमस्ते ॥१॥ अंनोधरानकरणाय न॥ लोकातिरिक्तवरणाय न० ॥ संसारवा र्षितरणाय न ॥ त्रैलोक्यसारशरणाय न० ॥ ॥ सन्निर्मितांत्रिमहनाय न० ॥ रागोरुदारुदहनाय न० ॥ विध्वस्तकृत्स्नकुहनाय न० ॥ पुण्यमा लिगहनाय न० ॥ ३॥ संसारतापशमनाय न० ॥ निर्दाक्यदायदमनाय न० ॥ सुव्यक्तमुक्तिगमनाय न ॥ रूपानिनूतकमनाय न ॥४॥ पा पौघपांसुपवनाय न० ॥ सेवापर त्रिजुवनाय न० ॥ क्रोधाशुशुणिवनाय न ॥ संमृत्युदन्वदवनाय न० ॥५॥ नेत्रा निनूतकमलाय न० ॥ शका चितांघ्रियमलाय न० ॥ निर्ना शिताखिलमलाय न ॥ पद्मोलसत्परिम लाय न० ॥ ६ ॥ श्री अश्वसेनतनयाय न० ॥ सर्वानुतैक विनयाय न० ॥ विख्यातनिश्चितनयाय न ॥ निर्णीतयुपनयाय न० ॥ ॥ श्रीसंघर्ष सुविनेयकधर्मसिंह, पादारविंदमधुलिएमुनिरत्नसिहः ॥ पार्श्वप्रजोर्नगव तः परमं पवित्रं, स्तोत्रं चकार जनतानिमतार्थ सिध्यै ॥ ७ ॥ ॥ अथ श्री महावीर जिन बंद ॥ ॥ सेवो वीरने चित्तमां नित्य धारो, अरि क्रोधने मन्नथी दूर वारो ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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