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चैत्यवंदनानि
५१३ उज्ज्वल लहीयें ॥१॥ महीनाथ ने पार्श्वनाथ, दो नीला निरख्या ॥ मुनि सुव्रत ने नेमनाथ, दो अंजन सरिखा ॥२॥ शोले जिन कंचन समा ए, एवा जिन चोवीश॥धीरविमल पंमित तणो,झान विमल कहे शिष्य ॥३॥ इति॥४॥
॥अथ श्रीचोविश जिन समकितनवगणती- चैत्यवंदन ॥ ॥ प्रथम तीर्थंकर तणा हुवा, नव तेर कहीजें ॥ शांतितणा लव बार सार, नव नव नेम लहीजें ॥१॥ दश नव पास जिणंदने, सत्तावीश श्री वीर ॥ शेष तीर्थंकर त्रिहुं नवें, पाम्या नवजल तीर ॥॥ ज्यांथी सम कित फरसियु, त्यांथी गणीये तेह ॥ धीरविमल पंमित तणो, ज्ञानविमल गुणगेह ॥३॥ इति ॥५॥
॥अथ चउदशें बावन गणधरनुं चैत्यवंदन ॥ ॥ गणधर चोराशी कह्या, वली पंचाएं ब्रेक ॥ दोय अधिक ग सय ग णा, शोल अधिक शत एक ॥१॥ शत सुमति ने गणधरा, एकसय अधि का सात ॥ पंचाणुं त्राएं तथा, अमसी गसी बात ॥२॥ बोहोंतेर बा शठ सगवन, पचास त्रेतालीश ॥ बत्तिस पण तिस कुंथुने, अर गणधर ते त्रीश ॥३॥ अडवीस अष्टादश कह्या, नमि सत्तर गणधार ॥ एकादश दश शिव गया, वीर तणा अगीयार ॥४॥ रिखनादिक चोवीशना, एक सहस सय चार ॥ अधिकेरा बावन कह्या, सर्व मली गणधार ॥५॥ दय पद वरिया सवे ए, सादि अनंत निवास ॥ करियें शुज चित्त वंदना, जब लग घटमां श्वास ॥६॥ इति ॥६॥
॥अथ पंच परमेष्ठिचैत्यवंदनं ॥ ॥ बार गुण अरिहंत देव, प्रणमीजें नावें॥ सिह आठ गुण समरतां,कुःख दोहग जावे ॥१॥ आचारज गुण उत्रीस, पंचवीश उवद्याय ॥ सत्तावीश गुण साधुना, जपतां सुख थाय ॥२॥ अष्टोत्तर सय गुण मली ए, एम समरो नवकार ॥ धीरविमल पंमित तणो,नय प्रणमे नित सार ॥३॥ति॥॥
॥अथ सीमंधरजिन चैत्यवंदनं ॥ ॥ श्री सीमंधर वीतराग, त्रिजुवन तुमें उपगारी॥श्री श्रेयांसपिताकुलें, बहु शोजा तुमारी ॥१॥ धन्य धन्य माता सत्यकी, जेणे जायो जयकारी॥ वृषन लंबने विराजमान, वंदे नर नारी ॥२॥ धनुष पांचशे देहमी ए, सो हीयें सोवन वान ॥ कीर्तिविजय उवद्यायनो, विनय धरे तुम ध्यान ॥३॥
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