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प्रतिक्रमण सूत्र.
॥ अथ चैत्यवंदनानि विख्यंते ॥ ॥ तत्र प्रथम सिद्धाचल चैत्यवंदनं ॥
विमल केवल ज्ञान कमला, कलित त्रिभुवन हितकरम् ॥ सुरराज सं स्तुत चरण पंकज, नमो आदिजिनेश्वरम् ॥ १ ॥ विमल गिरिवर श्रृंग मंगन, प्रवर गुणगणनूधरम् ॥ सुर असुर किन्नर को कि सेवित ॥ नमो० ॥ २ ॥ करित नाटक किन्नरीगण, गाय जिनगुण मनहरम् ॥ निर्झरा वली नेम होनिश ॥ नमो० ॥ ३ ॥ पुंकरीक गणपति सिद्धि साधी, को मी पण मुनि मनहरम् || श्री विमल गिरिवर शृंग सिद्धा ॥ नमो० ॥ ४ ॥ निज साध्य साधन सुर मुनिवर, कोमिनंत ए गिरिवरम् ॥ मुक्ति रमणी वस्या रंगें ॥ नमो ॥ ५ ॥ पाताल नर सुरलोकमांही, विमल गिरिवर तोपरम् ॥ नहिं अधिक तीरथ तीर्थपति कहे । नमो ॥ ६ ॥ एम विमल गिरिवर शिखरमंरुन, दुःखविहंरुण ध्याइयें ॥ निजशुद्ध सत्ता साधनार्थं परम ज्योतिने पाइयें ॥७॥ जित मोह कोह विछोह निद्रा, परमपद स्थित ज यकरम् ॥ गिरिराज सेवा करण तत्पर, पद्मविजय सुहितकरम् ॥ ८॥इति ॥ १ ॥ अथ श्रीशत्रजयचैत्यवंदनं ॥
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श्री शत्रुंजय सिद्ध क्षेत्र, दीठे दुर्गति वारे ॥ जावधरीने जे चढे, तेने जव पार उतारे ॥ १॥ अनंत सिद्धनुं एह ठाम, सकल तीर्थनो राय ॥ पूर्व नवाणुं रिखदेव, ज्यां वविया प्रभु पाय ॥ २ ॥ सूरजकुंम सोहामणो, कविक यक्ष अनिराम ॥ ना निराया कुलमंगणो, जिनवर करूं प्रणाम ||३|| इति ॥२॥ ॥ अथ पंचतीर्थी चैत्यवंदनं ॥
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॥ आज देव अरिहंत नमुं समरुं तारुं नाम ॥ ज्यां ज्यां प्रतिमा जिन तणी, त्यां त्यां करूं प्रणाम ॥ १ ॥ शत्रुंजय श्रीश्रादिदेव, नेम नमुं गिरना र ॥ तारंगे श्री अजितनाथ, खाबू रिखन जुहार ॥ २ ॥ अष्टापद गिरि ऊपरें, जिनचोवीशी जोय ॥ मणिमय मूरति मानशुं, जर जरावी सोय ||३|| समेत शिखर तीरथ वऊ, ज्यां वीशे जिन पाय ॥ वैजारकगिरि ऊप रें, श्री वीरजिनेश्वर राय ॥ ॥ मांरुवगढनो राजियो. नामें देव सुपास ॥ रिख कहे जन समरतां, पहोंचे मननी यश ॥ ५ ॥ इति ॥ ३ ॥ ॥ श्रथ चोवीश जिननुं चैत्यवंदन ॥
॥ पद्मन ने वासुपूज्य, दोय राता कही यें ॥ चंद्रप्रन ने सुविधिनाथ, दोय
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