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________________ प्रतिक्रमण सूत्र. तो पण दढ रहे परंतु पच्चरकाण जंग न करे, पच्चरकाणथी चूके नहीं, ते (अणुपालण के) अनुपालणा शुद्धि जाणवी. बही पूर्वोक्त सर्वप्रकार थी निर्जरारूप इहलोक परलोकनी वांबार हितपणे आशंकादि दोर्षे करी रहित ते (नावसुझत्ति के) नावशुछि इत्ति एटले एम जाणवू. ए शुछि पण समस्त सर्वे पञ्चकाणोने विषे जाणवी. एम नंगादि वि शुधिना विस्तारनां बीजक ग्रंथांतरथी जाणवां. एटले ए आग्मुंब शु हिनुं हार थयुं ॥ उत्तर बोल अहाशी थया ॥ ४६॥ हवे पञ्चरकाण- फल बे प्रकारें थाय, तेनुं नवमुं धार कहे . पच्चरकाणस्स फलं, इह परलोएय दो विहंतु ॥ इहलोए धम्मिल्लाई, दामन्नगमाइ परखोए ॥४॥दारं ॥॥ अर्थः-( पञ्चकाणस्सफलं के० ) पञ्चरकाण- फल ते (इहपरलोएय के०) शह लोक तथा परलोक आश्री (उविहं तु के ) बे प्रकार- वली (होश के०) होय, तेमां कोशएक प्राणीने इहलोकें एज नवमां तुरत फल थाय, अने कोश्एकने परलोकें एटले परजवें फल थाय, तिहां (इहलो ए के) आ लोकाश्रयी तो (धम्मिलाई के०) धम्मिलादिकनो दृ ष्टांत वसुदेवहिंमीग्रंथथी जाणवो, एटले धम्मिलें उत्तरगुण पच्चरकाण चा रित्ररूप न महीनापर्यंत आयंबिल प्रमुख तप कह्यु, तेथी तेहीज नवें घ णी लब्धि उपनी, शरीरना मल मूत्र सर्व औषधरूप थयां, राजसंपदानो गवी मोक्षपदवी पाम्यो. अने (परलोए के) परलोकनेवीषे एटले पर नवमां (दामन्नगमा के०) दामन्नकादि प्रमुखना एटले दामनक नामें व्य वहारीयाना बेटानो दृष्टांत श्रीआवश्यकनियुक्तिप्रमुख ग्रंथथकी जाणवो. एटले पच्चरकाण फलनुं नवमुं द्वार थयु. उत्तर बोल नेवू थया ॥ ४ ॥ . एमां आजव श्राश्रयी पञ्चरकाणना फलसंबंधी धम्मिलकुमारादिकनो दृष्टांत कह्यो ,तेनी कथा संदेपथी लखवी जोश्ये, परंतु ए धम्मिन्ननो रास उपाश् गयो , तेमां एमनी संपूर्ण कथा घणा सजानोने वांचवामां आवी गयेली , माटें आंही लखी नथी, जे सङनोने वांचवानी अभिलाषा होय तेमणे रास वांची लेवो. अने परनवें दामन्नकादिकने फल थयुं ते दामन्नकनो दृष्टांत संदेप Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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